Attention! Please enable Javascript else website won't work as expected !!

Pushtimarg :: Literature and Art & Activities | Shrinathji Temple, Nathdwara
 

श्री वल्लभाचार्य के पुष्टिमार्ग में सेव्य परब्रह्म श्रीकृष्ण कलानिधि और मधुराधिपति हैं। पुष्टिमार्गीय भगवत् सेवा में साहित्य, संगीत, शिल्प, स्थापत्य, चित्र, पाक, सज्जा, आरती आदि समस्त कलाओं का समावेश हो जाता है। पुष्टिप्रभु संगीत की स्वर लहरियों में जागते हैं। उन्ही के साथ श्रृंगार धारण करते हैं और भोग आरोगते हैं। संगीत के स्वरों में गाकयों को टेरते और व्रजांगनाओं को आहूत (आमंत्रित) करते हैं तथा रात्रि में मधुर संगीत का आनन्द लेते ही पोढ़ते हैं। पुष्टिमार्गीय संगीत का मूल, वैदिक उद्गीथ मे है जो कि सामगान पद्धति से होने वाला, गायन है। पुष्टिमार्गीय संगीत प्राचीन ध्रुपद शैली का शास्त्रीय संगीत है। ध्रुपद शैली का आलाप अनन्तकाल से, परमात्मा से बिछड़ी हुई आत्मा की तन्मयतापूर्ण पुकार है। अष्टछाप के आठों कवि उत्कृष्ठवाग्गेयकार संगीतज्ञ थे। पुष्टिमार्गीय मंदिरों में ध्रुपद गान की अविछिन्न और शुद्ध परम्परा अनवरत चली आ रही है। इसे हवेली संगीत भी कहते हैं। पुष्टिमार्गीय मंदिरों में ऋतु एवं काल के अनुरूप राग-रागिनियों के अनुरूप विष्णुपदों का, भगवद्भक्तिपूर्ण पदों का गान या कीर्तन होता है। इसके साथ परम्परागत वाद्य यंत्रों के द्वारा संगत होती है। पुष्टिमार्ग ने संगीत के क्षेत्र में सैकडो संगीतकार प्रदान किये है।

चित्रकला को भी पुष्टिमार्ग में बहुत प्रोत्साहन मिला। पुष्टिमार्गीय चित्रकला का उद्र्गम व्रज क्षेत्र है और उसके केन्द्र ब्रजराज श्रीकृष्ण है, इसलिए उस पर ब्रज संस्कृति का गहरा प्रभाव होना स्वाभाविक है। संवत् १७२८ में भगवान् श्रीनाथजी नाथद्वारा पधारे तक पुष्टिमार्गीय चित्रकला में ब्रज संस्कृति के साथ राजपूत-शैली और मेवाड़ की कला का भी सुन्दर समन्वय हो गया। पुष्टिमार्गीय चित्रों में कृष्ण -लीला के असंख्य चित्र मिलते हैं, जिनमें व्यक्ति चित्रण के साथ प्रकृति चित्रण और लोक-जीवन का अंकन भी है। पुष्टिमार्गीय पीठों में महाप्रभुजी से लेकर आज तक के आचार्यो के सजीव आपादमस्तक चित्र भी मिलते है। पुष्टिमार्गीय भगवत् सेवा में हाथ-कलम से चित्रित चित्र ही मान्य है। सेव्य स्वरूपों के पीछे कलात्मक चित्रांकन वाली पिछवाईयाँ लगाई जाती है, जिनमें कृष्णलीला, पर्व, उत्सव, आदि का चित्रण होता है। ३०० वर्ष से अन्नकूट की दृश्यावली वाली पिछवाईयों में त्रिआयामी अंकन हो रहा है। इनके अलावा पुष्टिमार्ग की हवेलियों में भित्ति चित्र सर्वत्र मिलते हैं, जिनमें लोककला के भी दर्शन होते हैं। कुछ भित्ति-चित्रों में म्यूरल पेंटिंग की झलक है, तो कुछ चित्र सेको-फेस्को पद्धति में भी निर्मित किये गये है।

साहित्य के क्षेत्र मे भी पुष्टिमार्ग का प्रदेय अतुलनीय है। संस्कृत, हिन्दी (ब्रज और खडी बोली) तथा गुजराती में प्रभूत मात्रा में पुष्टिमार्गीय साहित्य का सृजन हुआ है। उर्दू, पंजाबी, और तेलगु में भी कुछ साहित्य रचा गया है। अब अंग्रेजी में भी प्रचुर मात्रा में पुष्टिमार्गीय साहित्य का सृजन हो रहा है। ब्रज भाषा में गद्य और पद्य दोनों में प्राचीनतम साहित्य पुष्टिमार्ग का ही है। ब्रज भाषा के आदि कवि सूरदास अष्टछाप के अन्य कवि और अष्टछापेतर कवियों से लेकर भारतेन्दु हरिशचंद्र तक और आधुनिक काल में भी ब्रज भाषा में पुष्टिमार्गीय काव्य प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होता है। पुष्टिमार्गीय वार्ता साहित्य भी ब्रजभाषा के आरंभिक, प्राचीनतम एवं परिष्कृत गद्य साहित्य का प्रमाण है। विधाओं की द्रष्टि से न केवल गद्य और पद्य अपितु भावना साहित्य, टीका साहित्य, हास्य प्रसंग, वचनामृत साहित्य, नाट्यकृति, पत्र-साहित्य, घटना-विवरण, सिद्धान्त-विवेचन, पत्रकारिता आदि विभिन्न शैलियों, विधाओं और क्षेत्रों में पुष्टिमार्गीय साहित्य उपलब्ध होता है। इस प्रकार पुष्टिमार्ग में दर्शन, साहित्य और कला के विभिन्न क्षेत्रों को भी रचनात्मक प्रतिभा से समृद्ध किया है। इसका श्रेय श्रीमद्वल्लभाचार्य को है, जिन्होने सत्य की आराधना सौन्दर्य के माध्यम से करने की राह दिखाई।